देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, नेपाली, तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।अधितकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है)इसे शिरोरे़खा कहते हैं। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल आइपीए लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है।भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग ‘हू-ब-हू’ उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका कोई ख़ास मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या आइएएसटी।इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं (उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं — क्योंकि वो सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है। १) वर्तमान में संस्कृत ,पाली , हिन्दी , मराठी , कोंकणी , सिन्धी, काश्मीरी , नेपाली , बोडो , मैथिली आदि भाषाऒं की लिपि है । २) उर्दू के अनेक साहित्यकार भी उर्दू लिखने के लिए अब देवनागरी लिपि का प्रयोग कर रहे हैं । ३) इसका विकास ब्राम्ही लिपि से हुआ है । ४) यह एक ध्वन्यात्मक ( फोनेटिक या फोनेमिक ) लिपि है जो प्रचलित लिपियों ( रोमन , अरबी , चीनी आदि ) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है । ५) इसमे कुल ५२ अक्षर हैं , जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं । ६) अक्षरों की क्रम व्यवस्था ( विन्यास ) भी बहुत ही वैज्ञानिक है । स्वर-व्यंजन , कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण , अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं । ७) एक मत के अनुसार देवनगर ( काशी ) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पडा । ८) इस लिपि में विश्व की समस्त भाषाओं की ध्वनिओं को व्यक्त करने की क्षमता है । यही वह लिपि है जिसमे संसार की किसी भी भाषा को रूपान्तरित किया जा सकता है । ९) इसकी वैज्ञानिकता आश्चर्यचकित कर देती है । १०) भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं ( उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान है । इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है । ११) यह बायें से दायें की तरफ़ लिखी जाती है । १२) देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल , सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है । देवनागरी लिपि के अनन्य गुण १) एक ध्वनि : एक सांकेतिक चिन्ह २) एक सांकेतिक चिन्ह : एक ध्वनि ३) स्वर और व्यंजन में तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक क्रम-विन्यास ४) वर्णों की पूर्णता एवं सम्पन्नता ( ५२ वर्ण , न बहुत अधिक न बहुत कम ) ५) उच्चार और लेखन में एकरुपता ६) उच्चारण स्पष्टता ( कहीं कोइ संदेह नही ) ७) लेखन और मुद्रण मे एकरूपता ( रोमन , अरबी और फ़ारसी मे हस्त्लिखित और मुद्रित रूप अलग-अलग हैं ) ८) देवनागरी लिपि सर्वाधिक ध्वनि चिन्हों को व्यक्त करती है । ९) लिपि चिन्हों के नाम और ध्वनि मे कोई अन्तर नहीं ( जैसे रोमन में अक्षर का नाम “बी” है और ध्वनि “ब” है ) १०) मात्राओं का प्रयोग ११) अर्ध अक्षर के रूप की सुगमता देवनागरी पर महापुरुषों के विचार १) हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी , उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है । – आचार्य विनबा भावे २) देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है । – सर विलियम जोन्स ३) मनव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है । – जान क्राइस्ट ४) उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी ।
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